Sunday 16 December 2012

भीख या हक़ और ज़िम्मेदारी या सेवा .

बच्चे पैदा होने के पहले माँ के पेट मे ही या पैदा हो कर माँ की गोद मे दम तोड़ रहे है | उन्हे बचाने के लीये जो सवास्थ अमला होना चाहीये वो सरकार के पास नहीं है |ले दे कर बच्चा सावस्थता के साथ जन्म ले भी लेता है तो उस पर पर्याप्त आहार के अभाव मे  कुपोषण के  शीकार होने का साया छाया रहता है | वो कुपोषण से बचता बचाता अगर स्कूल मे पाहुचता भी है | तो उसके लीये स्कूलो मे स्थान की कमी है | भाग्य और भाग दौड़ कर माँ बाप उसको कीसी स्कूल मे भर्ती करवा भी लेते है | तो उसको पड़ाने वाले शीक्षक उपलब्ध नही है | कीस्मत से अगर स्कूल मे शीक्षकों की सरपरस्ती मील भी  जाये तो सरकार या मैनेज मेंट से उनकी टकराहाट की वजह से वो फ़ीर पढ़ाई को पूरी नही कर पाता | और कीसी तरह वो अपनी पढ़ाई कर अपनी परीक्षा देता है, तो पर्चा फुट जाने के कारण वो पर्चा रद्द | कीसी तरह डीग्री ले कर वो नौकरीयों के लीये आवेदन पर आवेदन और सरकारी नौकरीयो के लीये दी गई परीक्षाओ को पूरा करते है | तो परीक्षाओ मे हुई  कीसी न कीसी तकनीकी गलती पर कोई न कोई प्रतीभागी न्यालय जा कर उसके नतीजो को रुकवा देता है | और याहा एक बार फ़ीर वो बच्चा अपने भविषय को अंधकार मे पाता है |
               
                        पैदा होने के पूर्व से ले कर मृत्यु तक एक इंसान और इस देश के एक  वैध नागरीक को जीवन के प्रत्येक स्तर पर सरकार की और से जो हक , मूलभूत आवशयकताए  , पोषण , कानूनी सरक्षण , न्याय मीलना चाहीये उसको वो क्यो  लड़ कर ही ले पाता है ?  और शायद कभी कभी तो वो उसको लेने की जद्दो जहद करते करते  इस दुनीया से रुखसत भी हो जाता है |

                            ये बड़ी वीडम्बना है की लोगो के हक को सरकारे उनके ऊपर उपकार के रूप मे उनके सामने भीख की तरह डालते है | और अपने भाषणो मे अपने आप को जनता का सेवक कहते हुए मसीहा साबीत करने से भी नही चूकते | न जाने कब हमारी सरकारे वोटो की राजनीती से ऊपर उठ कर देश के हर नागरीक को उसके हक और जरूरत के हीसाब से मूलभूत सेवाए दे पाने मे सक्षम होंगी |       

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